जग है रैन बसेरा
यह जीवन है बस रैन बसेरा
नहीं कुछ तेरा नहीं कुछ मेरा
जो आया है वो ही जाएगा
यहाँ पर नहीं कोई रह पाएगा
फिर क्यों सोचे ओ मन चंचल
जग को अपना यहाँ ठिकाना
खाली हाथ है सभी को जाना
सब कुछ यहीं धरा रह जाना
फिर क्यों जोड़े ओ जन मूर्ख
मोह और माया का खजाना
मानुष जन्म है पुनः नहीं पाना
फिर क्यों समझे अपना बैगाना
ओ जग वालों ,माया नगरी में
क्यों बन बैठे हो यहाँ अन्जाना
यह जीवन है रैन बस रैन बसेरा
नहीं कुछ तेरा नहीं कुछ मेरा
सुखविंद्र सिंह मनसीरत