जग को करो ज़िंदा l नहीं रहे ये मुर्दा ll
जग को करो ज़िंदा l नहीं रहे ये मुर्दा ll
जग अनर्थ भया, जीना व्यर्थ भया l
प्रीत का अर्थ गया, आदर का अर्थ गया ll
सुकर्म का अर्थ गया, शर्म का अर्थ गया l
सत्य का अर्थ गया, रिश्तों का अर्थ गया ll
शिक्षा का अर्थ गया, सभ्यता का अर्थ गया l
मानवता का अर्थ गया, मानव का अर्थ गया ll
बुद्धिहीनो का घर भया, द्वेषों का घर भया l
जग है असत्य भया , जग है असभ्य भया ll
गुलशन भस्म भया , पल पल जख्म भया l
जग है नर्क भया , असुरों का स्वर्ग भया ll
जग क्या क्या भया , जग एसा कैसा भया l
जग अनर्थ भया, जीना व्यर्थ भया ll
जग को करो ज़िंदा l नहीं रहे ये मुर्दा ll
अरविन्द व्यास “प्यास ”
व्योमत्न