जग के जीवनदाता के प्रति
प्राची में हम देखते नित्य, भगवान भास्कर का प्रताप।
दुनिया का हर क्रीड़ा-कौतुक, उनकी ही गतिविधि का कलाप।।
वे भ्रमरों के आश्रयदाता, वे चक्रवाक का हरें शोक।
वे अखिल भुवन द्योतित करते, उनसे पाता आलोक लोक।।
वे गगनांगन की शोभा हैं, तारामण्डल के वे स्वामी।
उनसे ही दीप्त दिशाएं हैं, उनसे ही प्रकृति उर्ध्वगामी।।
वे कारण हैं षड्ऋतुओं के, वे सुमन समूहों के त्राता।
उन जैसा कोई कहाॅं अन्य, उनसे ही जग जीवन पाता।।
वे दिनमणि- भानु- दिवाकर हैं, वे मार्तण्ड- रवि कहलाते।
बारह भागों में बाॅंट वर्ष, को केवल वे ही हैं पाते।।
उनसे ही सतयुग- त्रेता है, उनसे ही है द्वापर- कलियुग।
वे ही कल्पों का सृजन करें, वे ही लेते कल्पों को चुग।।
सबका कल्याण वही करते, वे ही देते हैं हमें ज्ञान।
उद्भव- स्थिति- संहार वही, उनसे ही है विधि का विधान।।
वेदों में है उनकी महिमा, गायत्री उनका गान करे।
नित ब्रह्मनिष्ठ ब्राह्मण उनका, पूजन-अर्चन कर ध्यान करे।।
वे वन्दनीय सारे जग के, जग उनको नित्य प्रणाम करे।
भगवान राम उनके कुल में, जन्मे चर्चा अविराम करे।।
मैं यही सोचता हूॅं प्रतिदिन, अरुणोदय जब रॅंग लाता है।
जग के जीवनदाता के प्रति, अपना मस्तक झुक जाता है।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी