!! जगमंत्र !!
अक्सर गलती से कही ज्यादा
गलतफहमी करती है नुकसान।
गलती बंद करती बस खिड़की
गलतफहमी करती सारा मकान।
अक्सर बोल से ज्यादा यहां
विचार कर देते हैं बड़ा घाॅव।
कोई बोल डूबा देते हैं लुटिया
तो विचार डूबा देते सारी नाॅव।
अक्सर चेहरे से ज्यादा कही
चलन बता देता है पहचान।
चेहरे तो बनाये-बदल जाते
चलन बदलना नही आसान।
अक्सर मकान तो बना लेते
पर घर बनाने में जाते चूक।
खाली खजाना खुशियों का
खोटे से ही भरते संदूक।
अक्सर खुद की कमियां और
अपना चेहरा नजर नही आता।
दरप दरपण में एक छुपे
पर एक नजर आ जाता।
अक्सर भूल जाते अपनी
जमाने भर की नादानी।
पर दूसरे की भूल बताने
हमेशा होती है उंगली उठानी।
ये दुनिया तो एक ही थी
गढ़ दी हजार अपनी-अपनी।
माला-मंतर एक दुनिया के
कर दी अपनी-अपनी जपनी।
अक्सर बांट के रेशे-घास
रस्सी मजबूत बना है लेते।
और कही बांट सारे इंसान
रस्साकशी मजबूत बना है देते।
अक्सर वचन-प्रवचन उपदेश
देते न थकते दुनिया वाले।
सच पूछो तो बहुतों के इससे
खुद के पड़े रहते हैं लाले।
अब इस इकलौती दुनिया को
और कितना कोसते रहेंगे।
कब तक इस दुनियादारी का
दर्द यूं ही पालते-पोसते रहेंगे।
अब जी लेना है ही जीवन बना
“जीओ और जीने दो” महामंत्र।
लोकतंत्र प्रजातंत्र जनतंत्र से
अब आगे ले जाना ये जगमंत्र।
~०~
नवंबर, २०२४. ©जीवनसवारो