जगत में क्यों सदा तनहा रहा हूँ ?
जगत में बारहा आता रहा हूँ
खुदा का मैं बहुत प्यारा रहा हूँ |
वफ़ा में प्यार मैं करता रहा हूँ
निभाया प्यार मैं सच्चा रहा हूँ |
मिले मुझसे यहाँ सब प्यार से यार
मुहब्बत गीत मैं गाता रहा हूँ |
खुदा की यह खुदाई है बहुत प्रिय
खुदाई देखने आता रहा हूँ |
नहीं है दोस्तों में फासला फिर
जगत में क्यों सदा तनहा रहा हूँ ?
हमेशा साथ हम मिलकर रहे पर
मुहब्बत में सदा प्याषा रहा हूँ |
सभी की जो जरुरत थी, मिटाया
लुटाने प्यार मैं दरिया रहा हूँ |
किया है अजनबी की भी भलाई
भलाई का सदा जरिया रहा हूँ |
बुढापा फ़क्त दुख का इक बहाना
दुखी की जिंदगी जीता रहा हूँ
किया है प्यार उसने प्राण भर कर
प्रिया का मैं सदा सजना रहा हूँ |
भुलाया दोष सबका, दोस्त ‘काली’
गिले सब भूलकर अपना रहा हूँ |
कालीपद ‘प्रसाद’