छ: दीपक
“शांति” का दीपक बुझे नहीं, यह जरूरी आजकल
जला लेंगे शेष दीपक, हैं बुझे जो आजकल ।
“उत्साह” दीपक जले को, वे बुझाते फूंक कर
चोरियों में नामजद जो, खुले घूमें आजकल ।
“समृद्धि” दीपक तेल को, कोसते बदरंग दल
दीप “साहस” का कुचलकर, तोड़ते हैं आजकल ।
“प्रेरणाके” स्रोत दीपक, तेल बाती के बिना
सांस अंतिम ले रहे थे, जल उठे हैं आजकल ।
“साहसी” कुछ पस्त दीपक, टिमटिमाते थे कभी
देख धारा तेल की को, जगमगाते आजकल ।