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23 Aug 2021 · 1 min read

छोड़ दो..

खुले अम्बर में सितारों को लरज़ता छोड़ दो,
मेरी आंखों को बादल सा बरसता छोड़ दो..

वही राह ए दफ्तर है मगर ये डर है,
कही ऐसा न कह दो तुम की रास्ता छोड़ दो..

जी लूंगा अपनी रुसवाई को खुशीयां समझकर,
मगर ऐसा न कह देना की हंसना छोड़ दो..

है मुझमें बागों की बहारें और फूलो की संगत..
कही ऐसा न कह देना की महकना छोड़ दो..

यहाँ परिंदे सुनाते है हमारे प्यार के नगमे.,
इन्हे ऐसा न कह देना की चहकना छोड़ दो..

मै निकला हूं तेरी याद में बिन मांझी की कश्ती सा,
अब ऐसा न कह देना की बहकना छोड़ दो..

(ज़ैद बलियावी)

1 Like · 3 Comments · 521 Views

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