छोड़ दो..
खुले अम्बर में सितारों को लरज़ता छोड़ दो,
मेरी आंखों को बादल सा बरसता छोड़ दो..
वही राह ए दफ्तर है मगर ये डर है,
कही ऐसा न कह दो तुम की रास्ता छोड़ दो..
जी लूंगा अपनी रुसवाई को खुशीयां समझकर,
मगर ऐसा न कह देना की हंसना छोड़ दो..
है मुझमें बागों की बहारें और फूलो की संगत..
कही ऐसा न कह देना की महकना छोड़ दो..
यहाँ परिंदे सुनाते है हमारे प्यार के नगमे.,
इन्हे ऐसा न कह देना की चहकना छोड़ दो..
मै निकला हूं तेरी याद में बिन मांझी की कश्ती सा,
अब ऐसा न कह देना की बहकना छोड़ दो..
(ज़ैद बलियावी)