छोड़ के कंचन महल अटारी
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छोड़ के कंचन महल अटारी,
जोगन रूप सजाऊंगी……
वृन्दावन की कुन्ज गली में,
अपनी कुटी बनाऊंगी…..
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लट चिपकाऊ,भस्म रमाऊं,
लोकलाज बिसराऊंगी……
मन में तेरी मोहनी सुरत,
ले करताल बजाऊंगी……..
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सास-ससुर की कही ना मानूं,
घुंघट मुख ना छिपाऊंगी……
लोग कहे मीरा भई बावरी,
लोक लाज बिसराऊंगी……..
???? —लक्ष्मी सिंह?☺