छोड़ो स्वार्थ
करते
तारीफ सब
नि:स्वार्थ
सेवा की
अपने
अपनों से
करते क्यों
अपेक्षा
व्यापार की
करते
माता पिता
निस्वार्थ सेवा
बच्चों की
वही
बुढ़ापे में
ढूंढते स्वार्थ
सेवा में
सैनिक होते
जाबांज
देश के लिए
निस्वार्थ
दे देते
अपनी जान
देश के लिए
मत
फैलाओ
जाल
स्वार्थ का
इतना
हो जाये कम
निस्वार्थ का
मोल इतना
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल