छोटी-सी ये ज़िंदगी
दोहा गीत
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समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !
छोटी-सी ये ज़िंदगी, तिनके-सी लाचार !!
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सुबह हँसी, दुपहर तपी, लगती साँझ उदास !
आते-आते रात तक, टूट चली हर श्वास !!
पिंजड़े के पंछी उड़े, करते हम बस शोक !
जाने वाला जायेगा, कौन सके है रोक !!
होनी तो होकर रहे, बैठ न हिम्मत हार !
समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !!
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पथ के शूलों से डरे, यदि राही के पाँव !
कैसे पहुंचेगा भला, वह प्रियतम के गाँव !!
रुको नहीं चलते रहो, जीवन है संघर्ष !
नीलकंठ होकर जियो, विष तुम पियो सहर्ष !!
तपकर दुःख की आग में, हमको मिले निखार !
समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !!
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दुःख से मत भयभीत हो, रोने की क्या बात !
सदा रात के बाद ही, हँसता नया प्रभात !!
चमकेगा सूरज अभी, भागेगा अँधियार !
चलने से कटता सफ़र,चलना जीवन सार !!
काँटें बदले फूल में, महकेंगें घर-द्वार !
समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !!
छोटी- सी ये ज़िंदगी, तिनके सी लाचार !!
✍ #सत्यवानसौरभ