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28 Jan 2021 · 1 min read

*”छेरछेरा”*

“छेरछेरा”
पौष मास की पूर्णिमा तिथि पर ,
छत्तीसगढ़ की संस्कृति में छेरछेरा पर्व मनाते।
खरीफ फसल धान अरहर खलिहान से ले आते।
घर घर जाकर अन्न दान मांगते ,
टोकरी लेकर छेरछेरा भीख मांगते।
धान मिसाई होने के बाद घर घर धान का भंडार भरते।
अन्नपूर्णा देवी की पूजन करते हुए
नये चावल से चीला फरा व्यंजन बनाते।
अन्नदान से मृत्युलोक के सारे बंधन मुक्त हो ,मोक्ष प्राप्त कर जाते।
छेरछेरा पर्व में अन्नदान कर लोक संस्कृति परम्पराओं का निर्वहन करते।
माया कोठी में धान संग्रहित कर ,जीवन सार्थक पहल करते।
लोकपर्व के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ बनाते।
आदिकाल से चली आ रही परंपरा संस्कृति की धरोहर सहेज कर रखते।
मुरमुरा लाई तिल के लडडू ,खीर खिंचड़ा भंडारा खिलाकर दान पुण्य लाभ कमाते।
हेरी के हेरा……..छेरछेरा
माई कोठी के धान ल हेरहेरा……..! !
ये गूंज सुनाई देती है और जब दान देने में देरी होने पर बच्चे अपनी तोतली भाषा में मनुहार कर कहते हैं।
अरन बरन कोदो दरन
जबभे देबे तबभे टरन
छेरछेरा पर्व की संस्कृति परंपरा
?जय जोहार सीताराम संगवारी
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया
शशिकला व्यास✍️

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 261 Views
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