छूना चाहता हूँ मैं
छूना चाहता हूँ मैं
तेरे अनकहे जज्बातों को
होंठो में दबी रह गयी बातों को
बोलो इसका कोई जतन नहीं क्या?
छूना चाहता हूँ मैं
तेरे दिल के उस कोने को
जो रहता है मजबूर रोने को
बोलो इसका कोई जतन नहीं क्या?
छूना चाहता हूँ मैं
तुम्हारी उन अधूरी इच्छाओं को
दफनाई गयी जरूरी इच्छाओं को
बोलो इसका कोई जतन नहीं क्या?
छूना चाहता हूँ मैं
मेरे अहम में दबी तेरी सिसकी को
चेहरे से गायब हो चुकी हंसी को
बोलो इसका कोई जतन नहीं क्या?
छूना चाहता हूँ मैं
मोहब्बत भरे तेरे नाजुक दिल को
आँखों में समाई दर्द भरी झील को
बोलो इसका कोई जतन नहीं क्या?
छूना चाहता हूँ मैं
तेरे प्यार भरे अनकहे अल्फाजों को
जमाने से छिपाए दर्द भरे राजों को
बोलो इसका कोई जतन नहीं क्या?
छूना चाहता हूँ मैं
आँखों से झलकते प्यार के अहसास को
“सुलक्षणा” हमें जोड़कर रखे हुए विश्वास को
बोलो इसका कोई जतन नहीं क्या?
©® डॉ सुलक्षणा