छुपा है सदियों का दर्द दिल के अंदर कैसा
तेरे चेहरे में छिपा है बता ये मंज़र कैसा
ऑ॑॑ख कातिल और नजर में ये खंजर कैसा
तेरे चेहरे में छिपा है……….
लोग कहते हैं तुमसा नहीं कोई जमाने में
मैंने देखा तो फिर ये विरान सा बंजर कैसा
तेरे चेहरे में छिपा है……….
लब हैं खिलता कमल जुल्फ घटाओं जैसी
तुम्हारे संग-संग चलता मगर ये अंधर कैसा
तेरे चेहरे में छिपा है………..
तेरी नजाकत तेरी अदा पर सब हैं फिदा
अपनी ही लहरों में खोया सा समंदर कैसा
तेरे चेहरे में छिपा है………..
गुलाबी गाल हैं और ये हंसी फूलों जैसी
तुम्हारी लचक में उठता है ये बवंडर कैसा
तेरे चेहरे में छिपा है……….
हाल-ए-दिल ‘V9द’ सुना दे हमको जरा
छुपा है सदियों का दर्द दिल के अंदर कैसा
तेरे चेहरे में छिपा………..