छुट्टी बनी कठिन
भूली तिथी बिसरे है दिन, छुट्टी कैसी बनी कठिन
दिन मे सो लो रात मे जागो, कैसे अब आराम संभालो
घर पर खुद नजरबंद से दिन,कब पूरी हो येकैद के दिन
अखबार की बस बांट निहारो,डरडर खबरजहन उतारो
आंकड़ो मे गुम खबर जहीन दुआ मे काटे रातऔदिन
भूले खाना नहाना भूले कुर्ते कोट पेंट टाई सब भूले
आनलाइन के चलते चलते सबका बदल गया रूटीन
पोहे खालो हलवा लादो ठंडा कोई शेक पिलादो
लंबी फर्माइश पूरी करते सबसे ज्यादा व्यस्त किचन
ताश पीटलो चेस सजा लो भीतर ही कोई दांव लगालो
हवा बाहर की हुई मलिन बची रहे बस जान आमीन
यू ट्यूब फेसबुक वाट्सएप सोनी नेटफिल्कस चलालो
दिनभर अपना ज्ञान बढालो रहे ना बस कोई गमगीन
पेन्टिंग बनालो गाना गालो या फिर कोई साज बाजालो
अच्छी कोई किताब निकालो क्योकंटे राततारे गिनगिन
सुबह सुनहरी शाम है शीतल,चिडिया भी चहके बेहतर
गुजरेगा हर पल जो है ठहरा आसां हो चाहे हो कठिन
संदीप पांडे “शिष्य”