छुट्टियां
?छुट्टियां⭐
देखो !देखो! समय चक्र चलता है कैसी चाल,
हम भी कभी नन्हे बच्चे थे ,सम बाल गोपाल ।
करते थे अपनी मनमानी,
सबसे प्यारी, सबसे सयानी,
लगती थी हमें अपनी नानी।
आती थी जब छुट्टियां,
भूल जाती स्कूल नोटबुक की त्रुटियां।
करते जी भर शैतानी ,
पिटती मार खूब जब,
आंखों से आता पानी।
अगले ही पल भूल हम जाते,
हलवा पूरी ,खीर जब खाते।
आइसक्रीम, कुल्फी , जामुन वाला,
खाली ना जाता कोई ठेलेवाला।
नवाबी शान से इतराते,
मेहमान बन जब रोब जमाते,
शोर मचाते, धूम मचाते
सब का प्यार भर भर पाते,
नानी घर जब छुट्टियों में रहने जाते।
ऐ काश! फिर ऐसा हो जाए,
सुहाना बचपन लौट के आये।।
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मौलिक रचना
अरुणा डोगरा शर्मा
मोहाली।