छुअन
मैं चिड़िया -सा पेड़ पर बैठा
मैंने धरती गगन को देखा
गगन सुनील फैला दूर तक
धरा की हर हरी थी रेखा ।
शीतल पवन पुचकार रहा था
सूर्य करों से दुलार रहा था
नहीं था पेड़ पर एक भी पत्ता
वह अपना ठूंठ निहार रहा था ।
पूछा यह क्या हालत बना ली
ना कोई कोंपल ना कोई डाली
जब से अपनी छाया हटा ली
भीतर बाहर से हो गया खाली
अब नहीं कोई पक्षी आता
अब नहीं कोई पक्षी गाता
मेरे लिए सब और सन्नाटा
करूं क्या समझ नहीं आता।
मैंने जब छू लिया प्यार से
शाखें नम हो गई ओस से।
थामा उसने मुझे जोश से
मैंने उसे दिया दिलासा।