छुअन..
तुमसे मन का पथ जुड़ा,
क्यूँ करूँ छुअन की आस,
तुम तक भाव पहुँचते हैं,
बस यही प्रेम विन्यास…
मैं तुमसे कितना दूर यहाँ,
तेरा नित अनुभव करता हूँ,
सौम्य सुखद तेरी चितवन,
उर भावों में भर चलता हूँ…
इस प्रेम के मेरे प्याले में,
तेरे नेह की वास सुवास,
मेरे हिय के हर कोने मे,
एक तेरा ही अंतरवास….
© विवेक’वारिद’*