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24 Nov 2020 · 1 min read

छाया है घना अंधेरा

**** छाया है घना अंधेरा ****
************************

छाया चारों तरफ घना अंधेरा
कुछ नजर नहीं आए तेरा मेरा

अपनी ही धुन खोये खोये रहते
डफली पर राग बजाएं बहुतेरा

आँखों में चर्बी छायी है रहती
सबको समझते हैं अधीन मेरा

अभिमानी अहंकार में डूबा है
अभिमान ठहरता नही है घनेरा

इंसान इंसान का दुश्मन बना है
सोच का छोटा क्यों दायरा घेरा

सबकुछ यहीं पर धरा रह जाए
मानव मन क्यों करता मेरा मेरा

दुनियादारी स्वार्थों से भरी पड़ी
समझते एक डांग पर क्यो डेरा

किस शैली में करते हैंं उपासना
मनसीरत मिलता नहीं है बसेरा
************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
267 Views
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