छात्रों की पीड़ा
छात्रों की पीड़ा
अंक का बोझ, सिर पर है भारी, परिवार का है दबाव बहुत सारी. उम्मीदों का पहाड़ है खड़ा, समाज का है चित्रण भी कड़वा.
असफलता का डर है आँखों में, आत्महत्या का खयाल है मन में. हँसना भूल गए हैं वो सब, बस रटना है किताबें उनका काम.
माता-पिता की है इच्छा, बच्चे बने डॉक्टर या इंजीनियर जैसा. लेकिन हर बच्चा होता नहीं हुशियार, कुछ होते हैं कमजोर, कुछ होते बेकार.
समाज भी करता है टिप्पणी, असफल होने पर करता है बदनामी. इस दबाव को नहीं सह पाते वो, और चुन लेते हैं रास्ता गलत.
काश समझ सके सब यह सच, कि हर बच्चा होता है अलग. उम्मीदों का बोझ न डालें उन पर, बस दें उन्हें प्यार और सहारा.
शायद तब न हो ऐसी घटना, और खिल उठे जीवन उनका. हमें मिलकर करना होगा प्रयास, बचाने के लिए हर एक बच्चे की जान.