छाई रे घटा घनघोर,सखी री पावस में चहुंओर
छाई रे घटा घनघोर,सखी री पावस में चहुंओर
छुपा हुआ अंतस में सूरज,आए नजर न भोर
रे मन छाई रे घटा घनघोर,सखी री पावस में चहुंओर
काम क्रोध मद लोभ मोह की, घटा बड़ी चितचोर
ढकी हुई है आत्म चेतना, ज्ञान किरण अति दूर
रे मन छाई रे घटा घनघोर,सखी री पावस में चहुंओर
घनी है मन की रैन अंधेरी, मनवा है बेचैन
पिया मिलन को तरस रहा मन, प्यासे हैं दो नैन
किसको अपना दर्द बताऊं, नहीं ओर न छोर
रे मन छाई रे घटा घनघोर,सखी री पावस में चहुंओर
जनम जनम से भटक रही हूं, पायो ओर न छोर
मोह निशा को आन हरो हरि, सबल करो मन मोर
रे मन छाई ये घटा घनघोर,सखी री पावस में चहुंओर
बिजुरी चमकै बदरा गरजै,जियरा घबरावै मोर
श्याम पिया जल्दी आ जाओ, करो न देरी और
रे मन छाई रे घटा घनघोर,आए नजर न भोर
सखी री पावस में चहुंओर
सुरेश कुमार चतुर्वेदी