छाँव
अनुराधा का आज सम्मान समारोह था | पूरे गांव में ख़ुशी का वातावरण था | मुख्यमंत्री और और कई मंत्री आये |
पर्यावरण के लिए मिलने वाला अनुराधा को यह पुरुष्कार पूरे गांव के लिए गर्व की बात थी | जैसे ही सम्मान के लिए अनुराधा को मंच पर बुलाया गया | सारा सम्मान स्थल तालियों से गूंज उठा | सम्मान के बाद अनुराधा से कहा गया कि, तुम भी कुछ बोलो –
अनुराधा बोली – “मैं अनपढ़ थी लेकिन मैंने समय के हिसाब से होशियारी से काम लिया | मेरे पति की चतुर्थ श्रेणी की छोटी सी नौकरी थी | हम लोगो ने सोचा इस छोटी सी नौकरी में अगर बच्चे हो गये तो उनको अच्छी शिक्षा व लालन – पालन करना हमारे लिए असंभव होगा इसके लिए हम दोनों पति पत्नी ने संतानोत्त्पत्ति नही की | गांव वाले और करीबी रिश्तेदारों ने मुझे बाँझ एवं अपशगुन तक कहा | मैंने इन सब बातो पर ध्यान न देते हुए अपने काम में जुट गई और विगत 25 सालो में मैंने गांव के पहाडियों में एवं आसपास की सरकारी जमीनों, छोटे घास, पड़ती भूमियो, बंजर जमीनों में लगभग 500 एकड़ जमीन में पेड़ लगाकर जंगल खड़ा कर दिया और पहाड़ो के तलहटी 3 – 4 एकड़ एकड़ में दिनरात मेहनत करके तालाब खोद दिया जिससे गांव में पीने के पानी और जमीन में सिंचाई हेतु पानी उपलब्ध होने लगा |”
जब लोगो को पता चला तो मैं सबकी अम्मा बन गई | आज भी यही सोच रही हूँ कि आज मेरी संतान होती तो उनकी छाँव मुझे मिलती न मिलती इसकी कोई गारंटी नही है | लेकिन इन वृक्षों की छाँव मेरे और गांववालो के लिए सदा सालो साल मिलेगी |