छल फरेब
मुक्तक
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छल फरेब होता जहां, नहीं पनपता प्यार।
और स्वप्न सुख के नहीं, हो पाते साकार।
व्यर्थ गुजर जाते दिवस, जीवन के अनमोल।
ऐसे में होती नहीं, खुशियों की बौछार।
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छोटी छोटी बात पर, धोखा देते लोग।
करते मक्कारी भरे, शब्दों का उपयोग।
खूब तमाशा देखते, धरे हाथ पर हाथ।
कभी कभी सहयोग का, भी कर लेते ढोंग।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०६/०६/०५/२०२४