छम छम नाच रहीं हैं बूँदें
छम छम नाच रहीं हैं बूँदें
गातीं सरगम कानों में।
मचल रहा है दिल उल्फ़त का
कोयल कूँके बागों में ।
छम छम नाच रहीं हैं बूँदें……!
कोलाहल करती है दामिन
मन को दहला जाती है ।
पवन हिलोरें लेती आये
गीत सुरीले गाती है।
छम छम नाच रहीं हैं बूँदें……!
नन्हीं नन्हीं बुंदियाँ देखो
मस्तक मेरा चूम रहीं।
थाम कलाई शाखाएँ सब
मस्त मगन हो झूम रहीं।
छम छम नाच रहीं हैं बूँदें……!
पातों के संग करें ठिठोली
झूला खूब झुलाती हैं।
सावन की ये मस्त बहारें
मुझको पास बुलाती हैं।
छम छम नाच रहीं हैं बूँदें…….!
©✍डॉ० प्रतिभा ‘माही’