छम छम गिरती बरसात
खिड़की के बाहर छम छम गिरती बरसात,
दिल में उमड़ उमड़ आते तुम्हारे ख्यालात,
अब वो खुदा ही जाने क्या होगा।
मेरे दिल की बढ़ती जा रही हैं बेचैनियां,
काबू से बाहर होते जा रहे हैं मेरे जज्बात,
अब वो खुदा ही जाने क्या होगा।
तेरी यादों का कोहरा गहराता जा रहा है,
तन्हाई के आलम में बिगड़ रहे हैं हालात,
अब वो खुदा ही जाने क्या होगा।
नजरों से शुरू, नजरों पर खत्म हो गयी,
नहीं भुलाई जा रही है मुझसे वो मुलाकात,
अब वो खुदा ही जाने क्या होगा।
हर किसी की जुबान पर है मोहब्बत हमारी,
देखो दुश्मन बन गयी है हमारी ये कायनात,
अब वो खुदा ही जाने क्या होगा।
तुझसे एक पल की जुदाई भी सहन नहीं,
मिलन की सोचूं कैसे, मैं संध्या तुम प्रभात,
अब वो खुदा ही जाने क्या होगा।
“सुलक्षणा” के मन मंदिर में तस्वीर तुम्हारी,
दुआ है रब से जल्द आये मिलन की रात,
अब वो खुदा ही जाने क्या होगा।
©® डॉ सुलक्षणा