छठी इंद्री
आज तुम्हारी पुण्य तिथि है, राकेश तुम आज ही के दिन मुझे पुत्र पुत्री एवं माता जी को बिलखते छोड़ गये थे। कैसे भूल सकती हूं मैं वह मनहूस दिन। वैसे तो समय से घर पहुंच जाते थे उस दिन देर हो गई थी, मैं अमूमन रोज ही इंतजार किया करती थी, उस दिन ना जाने क्यों कितनी शंका कुशंकाएं चल रहीं थीं, कि दुर्घटना की खबर आ गई, आखिर तुम बच ना सके थे, दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। वर्ष भर तो में अपने कमरे से बाहर ना निकली थी, लेकिन जीवन तो चलाना ही था सो तुम्हारी जगह नौकरी करनी पड़ी, शायद ही कोई दिन गुजरा हो यह आंखें ना वहीं हों, 12 वर्ष का साथ था, कब बच्चे हो गए कब बड़े हो गए, पता ही ना चला।
साथ छोड़े हुए 2 वर्ष हो गए हैं, लगता है एक जीवन निकल गया, एक-एक दिन बरसों के समान कटता है, पल पल तुम्हारी याद आती है। कितने नटखट बच्चे थे, अब कैंसे गुमसुम से रहने लगे हैं। मांजी तो जैंसे बिना आत्मा के यह शरीर ढो रहीं हैं, जैसे दुनिया में कुछ है ही नहीं, यह दुख तो जो भुगतता है वही जान सकता है, आंखों से गंगा जमुना बह निकली।
इन दो वर्षों में इस दो मुही लंपट समाज का भी असली रूप देख लिया। भगवान किसी महिला को यह दिन ना दिखाएं महिला विधवा क्या हुई, कि समाज के सभ्य भेड़िए कैंसी-कैंसी गंदी नियत रखते हैं। भगवान ने महिलाओं को विशेष दृष्टि सिक्स सेंस छठी इंद्री दे रखी है जो ऐसे भूखे भेड़ियों से बचाती है। विधवाओं का ऐसे शरीर के भूखे भेड़ियों से बचना कितना कठिन है, आदमी सोच भी नहीं सकता। परिजन, सगे संबंधी, मित्र सहकर्मी, करीबी, समाज सब ललचाई दृष्टि से देखते हैं, कैसे कैसे बचती है वही समझ सकती है,जो भुक्तभोगी है,जो इन भेड़ियों से अपने आप को बचाती है, सुमन अंतस में राकेश से बातें करते करते रो पड़ी। राकेश जैसे कह रहा हो हिम्मत रखो सुमन तुम्हें लंबी जिंदगी जीना है। बच्चों का भविष्य मां की देखभाल सब तुम्हें करना है। मैं तो तुम्हारी हिम्मत पर उसी दिन आसवस्त हो गया था, जब मित्र की अशिष्टता पर तुमने थप्पड़ जड़ा था। ईश्वर तुम्हें शक्ति प्रदान करें, सदा खुश रखे।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी