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27 Jun 2016 · 1 min read

*छंद*

छंद
न चीजें स्वदेशी जरा भा रही वेशभूषा स्वदेशी पै’ हँसते रहे हैं।
न संस्कृति स्वयं की जिन्हें रास आती स्वभाषा पै’ जो तंज कसते रहे हैं।
निराधार कहते कि वो राष्ट्र वादी फकत रोटियां तोडते ही रहे हैं।
अगर घेरना ठौर है देश भक्ती तो’ वे देशद्रोही भले जी रहे हैं।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ(म.प्र.)

Language: Hindi
1 Comment · 501 Views
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Books from अंकित शर्मा 'इषुप्रिय'
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