चौपाई छंद
बदली जग की कार्य प्रणाली। यक्ष बना खुद आज सवाली।।
बहरा सुने बात फरियादी। उलट-पुलट यह मनु आजादी।।
गूंगा लगा आज चिल्लाने। अपनी बात श्रेष्ठ जग माने।।
आँखों वाला आँख चुराये। अंधा जग को राह दिखाये।
मानव जब से बदला भाई। मौसम ने भी पलटी खाई।।
सूरज उगा आज पश्चिम से। सच का न्याय डरा मुजरिम से।।
कहने को यह शीत काल है। लेकिन मानव इन्द्र जाल है।।
बिगुल बजा बादल घिर आया। बरसाती मेढ़क टर्राया।।
देखी बिल्ली, कुत्ता भागा। मुर्दा चिर निद्रा से जागा।।
मुर्दा पीटे जब दरवाजा। डर से दुबका मानव राजा।।