चौपाई छंद में मान्य 16 मात्रा वाले दस छंद {सूक्ष्म अंतर से
चौपाई छंद में मान्य 16 मात्रा वाले दस छंद {सूक्ष्म अंतर से –
छंद विधान सहित }
पूज्य पाद श्री तुलसी दास जी द्वारा रचित श्री रामचरित मानस की चौपाई , हम 16 मात्रा की मानकर नमन करते है , पर बारीकी से देखा जाए तो 16 मात्रा वाले अन्य छंद भी मिलते है, जिन्हें हम चौपाई की ही मान्यता देते है ,व समझते है ,
16 मात्रिक कुछ छंद चौपाई में मान्य कर सकते हैं |
लेकिन सभी चौपाई छंद अन्य छंद नहीं माने जा सकते है
16 मात्राओं के नाम पर स्वत: हृदय में चौपाई छंद का ही नाम आता है, सबसे पहले चौपाई छंद
1- चौपाई छंद – चार चरण, सम मात्रिक छंद,
चरणान्त में सभी चौकल >दो गुरु || एक गुरु + दो लघु || >या चार लघु 1111 ||या> दो लघु + एक गुरु
लोभी धन का ढेर लगाता | पास नहीं संतोषी माता ||
हाय-हाय में खुद ही पड़ता || दोष सुभाषा सिर पर मढ़ता ||
कहीं -कहीं नगदी में जुटता | कभी उधारी करके लुटता ||
कभी सृजन हो जाता भारी | कहीं सृजन में बंटाधारी ||
ग्रीष्म ताप को चढ़े जवानी | बने प्यार का बादल दानी |
रोम-रोम में खिले कहानी | बरसे जब भी पहला पानी |
सुभाष सिंघई
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2- पादाकुलक छंद ही देख लीजिए , यह छंद चौपाई में मान्य कर सकते हैं |
लेकिन सभी चौपाई छंद पादाकुलक छंद नहीं माने जा सकते है
पादाकुलक छंद विधान –
पादाकुलक छंद 16 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। यह संस्कारी जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 16 मात्राओं की मात्रा बाँट —-चार चौकल हैं।
चौकल में चारों रूप (1111, 112, 211, 22) मान्य रहते हैं।
एक प्रकार से देखा जाय तो पादाकुलक छंद प्रसिद्ध चौपाई छंद का ही एक प्रारूप है।
चौपाई छंद में चार चौकल बनने की बाध्यता नहीं है जबकि पादाकुलक छंद में यह बाध्यता है।
भानु कवि के छंद प्रभाकर में पादाकुलक छंद के और भी और भी रुप मिलते जुलते कई छंदों की सोदाहरण व्याख्या की गयी है। यहाँ मैं वह चार छंद उदाहरण सहित प्रस्तुत कर रहा हूँ।
3- पादाकुलक , मत्त समक ( छंद विधान )– मत्त समक छंद संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छंद है। इसमें चार चौकल के अतिरिक्त 9 वीं मात्रा सदैव लघु रहनी चाहिए।
ज्ञानी रहता निर अभिमानी |
जैसे शीतल रहता पानी ||
देता सबको अपनी छाया |
पास न रखता कपटी माया ||
सुभाष सिंघई
4- पादाकुलक, विश्लोक छंद विधान – विश्लोक छंद संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छंद है। इसमें चार चौकल के अतिरिक्त 5 वीं और 8 वीं मात्रा सदैव लघु रहनी चाहिए। अर्थात दूसरा चौकल चार लघु ही लय देगा , क्योंकि पूरित जगण रख नहीं सकते है , लय भंग हो जाएगी |
रुकते रघुवर वन में आकर |
कुटिया लछमन छाते जाकर ||
कंकण हटकर पीछे जाते |
प्रभु का दरसन सीधा पाते ||
सुभाष सिंघई
5- पादाकुलक, चित्रा छंद विधान – चित्रा छंद संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छंद है। इसमें चार चौकल के अतिरिक्त 5 वीं, 8 वीं और 9 वीं मात्रा सदैव लघु रहनी चाहिए।
ज्ञानी हरदम गरिमा रखता |
वाणी मधुरम् सुखमय कहता ||
रागी बनकर जहर न पीता |
प्रभु की रहमत रखता गीता ||
सुभाष सिंघई
6-पादाकुलक, वानवासिका छंद विधान – वानवासिका छंद संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छंद है। इसमें चार चौकल के अतिरिक्त 9 वीं और 12 वीं मात्रा सदैव लघु रहनी चाहिए।
संतो का जब प्रवचन सुनता |
बैठा मानव हरदम गुनता ||
तब संसारी कपट न रखता |
मस्तक अपना चरणन धरता ||
सुभाष सिंघई
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7-अरिल्य छंद और
8- डिल्ला छंद
यहाँ मैं अरिल्ल छंद से मिलता जुलता एक और छंद उदाहरण सहित प्रस्तुत कर रहा हूँ। ।
डिल्ला छंद विधान – डिल्ला छंद संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छंद है। इसमें चार चौकल के अंतिम चौकल का चरणांत भगण (S11) से होना चाहिए।
अरिल्ल छंद में भी चरणांत में दो लघु मान्य हैं परंतु भगण की बाध्यता नहीं है।
इस प्रकार डिल्ला छंद का हर चरण अरिल्ल छंद में भी मान्य रहता है परंतु अरिल्ल छंद के चरण का डिल्ला छंद का चरण होना आवश्यक नहीं। डिल्ला छंद की मात्रा बाँट:- 4 44 211 है।
इसको शुद्ध डिल्ला छंद भी कह सकते है , पर इसका चरणांत अरिल्य छंद में भी प्रयोग कर सकते है
चार चरण, सम मात्रिक छंद,
चरणान्त में भगण 211
लोभ कपट जब रहता आकर |
दुखिया दिखता सब कुछ पाकर ||
तृप्त न होता सब कुछ लेकर |
पछताता है सब कुछ खोकर ||
सुभाष सिंघई
अरिल्य छंद – चरणांत यगण 122
चरणांत- 122 यगण है व चरणांत 211 भगण भी रख सकते है
जग लगता है रैन बसेरा |
फिर भी कहता यह कुछ मेरा ||
माया का रहता जब घेरा |
रहता कुहरा पास. घनेरा ||
सुभाष सिंघई
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9- अड़िल्ल छंद –16 मात्रिक
चार चरण, सम मात्रिक छंद,
चौपाई जैसा ही, चरणान्त में – दो लघु 11 और दो गुरु 22
घर पर दुख डेरा रहता है |
निज साया निज से डरता है ||
सदा डराता दिन उजियारा |
रोता रहता सब कुछ हारा ||
सुभाष सिंघई
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10- सिंह विलोकित छंद
(सममात्रिक,सोलह मात्रिक, चार चरण, चरणांत लघु गुरू 12
जो समाज में जोड़े कड़ियाँ |
सुंदर वह कर देता लड़ियाँ ||
समय बताती हँसकर घड़ियाँ |
लगे बरसने जल की झड़ियाँ ||
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सरलता–आप अपनी लिखी चौपाई में पदांत विधानुसार करके उपरोक्त छंद बना सकते है ~ बैसे यह सभी सामूहिक रुप से चौपाई छंद कह सकते है
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©®सुभाष सिंघई
एम•ए• {हिंदी साहित़्य , दर्शन शास्त्र)
(पूर्व) भाषा अनुदेशक , आई•टी •आई • )टीकमगढ़ म०प्र०
निवास -जतारा , जिला टीकमगढ़ (म० प्र०)