चेतना
मन जीर्ण शीर्ण सा बुझा-बुझा
मष्तिष्क किंकर्तव्यविमूढ़
चेतना शुशुप्त हुई
रहस्य बने यह अति गूढ़
क्या पुनःहोंगे हिय तट हरे-भरे..?..१
विषाक्त विषाणु गया ठहर
कोरोना नाम की उठी लहर
श्वासों पर अतिशय प्रहार
प्रतिपल,प्रतिक्षण,प्रहर-प्रहर
क्या प्रयास, होंगे सभी बेकार..?..२
इसी क्रम में सम्पूर्ण विश्व
बना पागल अतिशय विमूढ़
आर्यावर्त का सविनय प्रयास
जीवन ज्योति सा बना प्रकाश
हां ! अब होंगे,प्रयास सभी साकार…३
आशान्वित हुई मानव सृष्टि
हुआ गलतियों का संपूर्ण बोध
एक-एक जीवन बचाने को
हुए नियमित व्यापक शोध
बने,औषधियों के विभिन्न प्रकार…४
चला एक जन जागृत अभियान
बने जीवन के प्रति आशावान
निष्ठा,दया,समर्पण के प्रति,
चेतना एकबार पुनः समर्पित
हुई विजय,होगी विजय नित परोपकार…५