चूहों का सरपंच
18• चूहों का सरपंच
कलिकाल में चूहों की हालत भी दिन पर दिन दयनीय होती जा रही थी ।खाने के लाले पड़ रहे थे ।जिन अनाजों पर उन्हें सर्वाधिक भरोसा था,शहर में सरकारी गोदामों के सिवा और कहीं देखने को नहीं मिलता था।शहरी गृहिणियाँ अनाज-पानी बहुत संभाल कर रखती थीं।कुछ बचा भी तो झट फ्रिज में रख गया । उधर गोदाम में बड़े चूहे छोटों को मार भगाते थे।गाँवों में भी अफ़राद कहाँ था! किसानों को फायदा कम हो रहा था ।चौकसी बढ़ी थी।अब उन्हें बारिश के साथ ही समर्थन मूल्य की भी प्रतीक्षा रहती थी ।सरकार को बेंचने के बाद शादी-विवाह के लिए बनिया को बेंचते थे।उनकी आढ़त में बोरे रोज़ आते-जाते थे।कभी-कभी चूहे बोरों में ही दब जाते थे ।
खैर बात पंचायत में पहुँची।पंचायत में भरोसे लाल सरपंच के साथ चार पंच और थे,दो चूहे-दिलफेंक सिंह और रंगीला तथा शिक्षित बर्ग से दो चुहिया मनोनीत हुई थीं–सुविज्ञा तथा अविज्ञा।पंचायत में मुद्दा त्वरित विचारण हेतु स्वीकृत हुआ ।अगले ही दिन चूहों की सामान्य सभा बुलाई गई ।बहुत विचार-विमर्श के बाद पंचायत ने सबके भोजन की व्यवस्था हेतु एक सामुदायिक भंडार गृह बनाने का निर्णय लिया ।उसमें तमाम सदस्य तरह-तरह की खाद्य वस्तुएँ एकत्र करेंगे और वहां से सबको कतार में खड़े करके तीनों पहर भोजन प्रदान किया जाएगा ।सुरक्षित गोदाम के लिए एक बड़ा सा पार्क चुना गया ,जो सरकारी अव्यवस्था का शिकार होकर जंगल में परिवर्तित हो चुका था ।उसी में भंडारण हेतु असंख्य बिलों का निर्माण हुआ ।
विशेष यह कि व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए पंचायत ने जनसंख्या नियंत्रण आवश्यक बताया ।
एक नागरिक संहिता लागू किया गया कि राशन के लिए एक चूहा-चुहिया के साथ दो बच्चों को ही सरकारी राशन मिलेगा ।अभी हर चूहा पांच चुहियों के साथ रहता था ।इसलिए यह बात बहुतों को नागवार गुजरी ।आजादी पर हमला जैसा लगा ।खुद दिलफेंक और रंगीला ने भीतर-भीतर चूहों को भड़काने का काम किया ।तीसरी पंच अविज्ञा की भी विरोध में मौन सहमति थी।बागियों की हाँ में हाँ मिलाती थी।फिर चूहों का उसी जंगली पार्क के गेट पर रास्ता रोको आंदोलन और धरना-प्रदर्शन शुरू हुआ । उधर बिल्लियों को इस जमावड़े की भनक लगी।वे पार्क के गेट के आसपास मंडराने लगीं ।बहुतेरे छोटे चूहे कम होने लगे।सरपंच भरोसेलाल ने शीघ्र बैठक बुलाकर अपनी विशेष संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग कर आपद्काल घोषित कर दिया ।धरना-प्रदर्शन मना हो गया ।विरोधी लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाने लगे ।फिर भी बिल्लियों का खतरा टालने के बहाने वे सरपंच से मिले।उन्हें उम्मीद थी कि सरपंच हथियार डाल देगा या सरपंची छोड़ देगा ।
लेकिन सरपंच बेहद अनुभवी चूहा निकला।उसने सरकारी गोदाम से रातों- रात पहलवान चूहों को बुला लिया ।उनमें से कुछ तो पहले ही चीन और इजरायल जैसे देशों से प्रशिक्षित होकर लौटे थे। उन्होंने तुरंत मोर्चा संभाल लिया । कुछ ने बिल्लियों की पीठ पर कूदना और आँखों पर हमला करना शुरू कर दिया । बिल्लियों को सपने में भी ऐसी उम्मीद नहीं थी कि चूहे भी निर्भय होकर शेर बन सकते हैं ।वे भाग खड़ी हुईं और फिलहाल चूहों की जान बची।
सर्वशक्तिमान सरपंच भरोसेलाल ने पंचायत भंग कर दिया और जल्दी ही नई पंचायत के गठन और उसके द्वारा नई व्यवस्था का ऐलान होना निश्चित किया ।
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–राजेंद्र प्रसाद गुप्ता,मौलिक/स्वरचित, 16/06/2021•