चूड़ियां
अहसासों, जज्बातों के रंगों से सजी
कितनी मनमोहक हैं ये धानी चूड़ियां,
बचपन में, मिट्टी से चूल्हा लीपते
देखी हैं मां के हाथों की खनकती चूड़ियां,
मां की उन्हीं टूटी चूड़ियों से बना एक चित्र,
आज भी मन में कसकती हैं चूड़ियां
धड़कते दिल से किसी आहट का इंतजार करती
और उससे नज़रें दो चार होते ही,लजाती है चूड़ियां
दो दिलों के जज़्बात एक होते ही,
सुर्ख गालों की रंगत से दहकती हैं चूड़ियां,
आंगन में नई किलकारी की गूंज से
एक अनोखी पुलक से भर उठती हैं चूड़ियां,
कई बार अनछुए अहसासों की
महक से मदमाती हैं चूड़ियां
साजन से दूर,रात के अकेलेपन में
यादों से बातें करती हैं चूड़िया,
नारीत्व के अभिमान से भरपूर
औरत का श्रृंगार हैं चूड़ियां.