चूड़ियाँ
आदि काल से चूड़ियाँ, संस्कृति का आघार।
खुशहाली की चिन्ह यह, प्रमुख कर अलंकार।।
खनके हाथों में सदा, चूड़ी वृत्ताकार।
रिक्त कलाई हो नहीं, भरी रहे दो-चार।।
पहने बेटी हाथ में, चूड़ी बनी दुलार।
बहू कलाई पर सजी, घर का पूरा भार।।
हाय! निगोड़ी चूड़ियाँ, , आये कभी न बाज।
खनक-खनक कर हाथ में,कह दे सारे राज।।
रिश्ते चूड़ी की तरह, गये हाथ से छूट।
रहते कुछ दिन साथ में, फिर जाते हैं टूट।।
जो अपने बनकर रहे, गये भँवर में छोड़।
जैसे चूड़ी काँच की, दिये खेल में तोड़।।
चूड़ी वाले हाथ को, मत समझो बेकार।
भारत, लंका पाक में, सफल रही सरकार।।
“बैठ पहन कर चूड़ियाँ “, उपमा दी कमजोर।
धरा-गगन से चाँद तक, है चूड़ी का शोर।।
अब शरहद पर गूँजती, चूड़ी की झनकार।
झाँसी की रानी बनी,उठा लिया तलवार।।
दुर्गा, काली भगवती, श्रेष्ठ शक्ति अवतार।
हाथों में चूड़ी पहन,करें दुष्ट संहार।
बजे रसोई चूड़ियाँ, अनपूर्णा का रूप।
रातों की लोरी बनी,दिया छाँव जब धूप।।
-लक्ष्मी सिंह
-नई दिल्ली