चुक हुई है तो, स्वीकारते क्यों नहीं?
माना कि कोई बिमारी नहीं चाहता है,
लेकिन उसे नजर अंदाज़ कर आता है,
तभी वह उस बिमारी में फंस जाता है,
और यदि वह बिमारी सक्रंमण वाली है,
तो फिर उसे पुरे परिवार में फैलाता है,
करता है चुक,पर स्वीकार नहीं कर पाता है।
संक्रमित व्यक्ति स्वयं तो झेलता ही है,
उसका संक्रमण परिवार भी झेलता है,
और यदि कोई आस-पड़ोस का संपर्क में आता है,
तो वह भी ऐसे संक्रमण को साथ ले जाता है,
और इस तरह से सारा समाज, संक्रमित हो जाता है,
लेकिन वह संक्रमण लाने वाला व्यक्ति, इस चुक को स्वीकार नहीं कर पाता है।
आज का युग संचार का युग है,
संचार के माध्यम से आज कौन दूर है,
थोड़ी सी तकलीफ होती है,
तो रिस्तेदारों तक पहुंच जाती है,
भौतिक संसाधन हैं आज भरपूर,
रिस्तेदार आ जाते हैं होकर आतुर,
और सांत्वना देने को क्या आते हैं,
संक्रमित होकर चले जाते हैं,
फिर यही दौर उनके साथ भी चलते हैं,
संक्रमण का दंश वह भी झेलते हैं,
लेकिन वह संक्रमण लाने वाला व्यक्ति,
इस चुक को स्वीकार नहीं करते हैं।
ऐसा ही तो इस महामारी में भी हुआ है,
विदेश से कोई, यह संक्रमण को लेकर लौटा है,
और उसके संपर्क में जो,जो भी आए,
वह सब भी संक्रमित होते पाए,
इसका दुषप्रभाव तो उन पर भी हुआ है,
जो भी उनके उपचार में लगा है,
इसका असर तो इन पर भी पड़ा है,
जो उनकी रक्षा व सुविधा को खड़ा है,
आज पुरा विश्व इस संक्रमण में जुटा है,
लेकिन वह जो इस संक्रमण को बनाने वाला है,
क्या वह अपनी चुक को मानने वाला है।।