चुलियाला छंद ( चूड़मणि छंद ) और विधाएँ
चुलियाला/चूड़ामणि छंद – (यह बड़ा रोचक छंद है , इसमें आप अपने लिखे हुए दोहों का उपयोग कर सकते हैं , या नया भी लिख सकते हैं।
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(गूगल अनुसार रीतिकालीन महाकवि #केशव दास जी ने इसे #चूड़ामणि छंद कहा है।
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चुलियाला छंद की विधान मापनी कई विद्वान आचार्यों की, पढ़ने मिली है , किसी ने एक दो उदाहरण- एक- दो मापनी अवगत कराकर इतिश्री कर ली है | तो किसी ने विस्तृत लिखा है, पर पदांत के आधार पर नामकरण वह भी नहीं कर सके हैं। जैसा कि अन्य छंदों के साथ किया गया है – ताटंक -कुकुभ -लावनी छंद इत्यादि |
आठ तरह से प्रमुख सहज चुलियाला छंद लिखे जा सकते हैं |
(और गहराई में जाएंँ तो 184 प्रकार हैं ) 23 प्रकार के दोहा × 8 प्रकार के पदांत = 184 )
सीधा सरल विधान है , वह 13 – 16 मात्रा का है ,
पर मुख्य पदांत आठ प्रकार के हैं |
और सबसे सूक्ष्म सहज सरल बात यह है कि आठों प्रकार ( जिनका नामकरण चुलियाला छंद ही है ) में #दोहा_छंद समाहित है |
यानी आप अपने लिखे दोहा छंद के प्रत्येक पदांत में , दोहे के भाव के अनुसार एवं समान्त का ध्यान रखते हुए 5 मात्राएँ और जोड़कर , चतुष्पदी चुलियाला छंद लिख सकते हैं।
विशेष निवेदन – आप जिस पदांत को दोहा में सहजता से जोड़ सकें , उसी का प्रयोग करें | आठ पदांतों में से पाँच-छ: पदांत तो लय युक्त आसानी से जुड़कर , सुंदर छंद सृजित हो जाते हैं।
चुलियाला के छंद में , तेरह सौलह भार मिलेगा |
दोहा का प्रथमा चरण , अग्र दूसरा सार खिलेगा ||
दोहा के जब सम चरण, जुड़े वर्ण जब पंच सुहाने |
बने चतुष्पदी गेय तब , चुलियाला का मंच झुलाने ||
(सुभाष सिंघई)
अब और सरल से सरल विधान निवेदित कर रहा हूँ ::- –
दोहा के पदांत में पाँच कला ( पांच मात्रा जोड़ना ) से चुलियाला छंद सृजित किया जा सकता है।
दोहों के साथ निम्न तरह 5 मात्राओं को जोड़कर 8 प्रकार से चुलियाला छंद बनाया जा सकता है।
~चतुष्पदी चुलियाला छंद / मुक्तक / गीत – के लिए दो दोहों का एक साथ प्रयोग करना पड़ेगा | दो दो चरण सम तुकांत अथवा चारों चरण सम तुकांत हो सकते हैं।
गीतिका में दो- दो चरण प्रयोग होंगे |
व एक “चतुष्पदी चुलियाला ” के लिए निम्न में से कोई एक पदांत चयन कर लें , व दोहा छंद पदांत में जोड़ दें , व छंद के ऊपर पदांत उल्लेख कर दें।
विशेष सूचना
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1–एक “चतुष्पदी चुलियाला ” के लिए निम्न में से कोई एक पदांत विधान का चयन कर लें , व दोहा छंद पदांत में जोड़ दें ,
2- छंद के ऊपर पदांत विधान का उल्लेख कर दें।
3-मूल छन्द में पदांत एक ही पदांत न रखें।विधान वही पर शब्द अलग।
आठ प्रकार का चुलियाला छन्द
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1-दोहा+ गुरु लघु गुरु (212)शुद्ध-रगण
2- दोहा+लघु गुरु गुरु,(122)शुद्ध-यगण
3-दोहा+गुरु लघु लघु लघु (2111)शुद्ध भगण+लघु
4-दोहा+ लघु लघु लघु गुरु,(1112)शुद्ध नगण+गुरु
5. दोहा+लघु लघु लघु लघु लघु,(11111)शुद्ध नगण+लघु, लघु
6-.दोहा+ लघु गुरु लघु लघु, (1211)शुद्ध जगण+लघु
7-दोहा+ गुरु गुरु लघु (221) शुद्ध तगण
8-दोहा+ लघु लघु गुरु लघु , (1121)शुद्ध सगण+लघु।
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1– चुलियाला छंद (चतुष्पदी) दोहा छंद के सम चरणों में + 212
बनने का अवसर मिले , तब बनना तुम दास राम के |
भक्त दास हनुमान से , बनो राम के खास काम के |
भक्त शिरोमणि हो गए , जग में श्री रविदास नाम से |
गंगा चलकर आ गई , खुद ही उनके पास धाम से ||
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2- चुलियाला छंद चतुष्पदी ) दोहा छंद के सम चरणों में + 122
जो भी दीन गरीब हों , कभी न मानो दास हमारे |
अंधकार में रोशनी , भरते रहे उजास तुम्हारे ||
छोटों को जो देखकर , उनको अपना दास विचारे |
कहें ‘सुभाषा’ वे सदा , रहते खुद ही त्रास किनारे ||
चुलियाला छंद चतुष्पदी = दोहा छंद के सम चरणों में + 122
खूब दिखाते प्यार अब , करते कपटी बात सयानी |
चोटिल करते पीठ हैं, बन जाती है घात कहानी ||
मीठी मीठी बात से खूब दिखाते प्यार सुहाना |
अनहित करें प्रदान वह , करें पीठ पर वार रुलाना |
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3- चुलियाला छंद चतुष्पदी = दोहा छंद के सम चरणों में + 2111
हम दासों के दास हैं , कहता आज सुभाष बोलकर |
राम नाम जो पुंज है , रखता हृदय प्रकाश खोलकर ||
मात पिता गुरु के चरण , शरण राम की पास जानकर |
नहीं ‘सुभाषा’ चूकता , रहे चरण में दास मानकर ||
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4- चुलियाला छंद. चतुष्पदी= दोहा छंद के सम चरणों में+ 1112
मेंढक तुलते हैं नहीं , कितना करो प्रयास सहज ही |
एक चढाते हम जहाँ , दूजा कूदे खास महज ही |
अजब-गजब अब भक्त हैं , सब हैं चतुर सुजान तरल से |
पहले अपना देखते , नफा और नुकसान सरल से ||
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5- चुलियाला छंद.चतुष्पदी =दोहा छंद के सम चरणों में + 11111
जय -जय बोले उस जगह , जिधर मिले कुछ खास रतन धन |
नहीं पूछ हो जिस जगह , कह उठते बकवास तपन मन |
पूँछ मीडिया थामकर , चलते नेता लोग यतन कर |
योगदान के नाम पर , देते निंदा रोग वतन पर ||
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6-. चुलियाला छंद चतुष्पदी= दोहा छंद के सम चरणों में + 1211
आप यहाँ क्या कर रहे , यह मत पूछें बात अभी हम |
फैलाया है रायता , देने बस आघात नहीं कम ||
दोष गिनाते घूमते , और खोजते जोश यहाँ पर |
खल से होता सामना , खो जाते हैं होश वहाँ डर ||
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7- चुलियाला छंद चतुष्पदी= दोहा छंद के सम चरणों में + 221
शिव शम्भू का वास शुभ , है पर्वत गिरिराज देखो न |
गंगा का विश्राम है , बनी जटा सरताज लेखो न |
चंद्र भाल पर सोहता , आसन को मृग छाल लाओ न |
बैठी धूनी शिव यहाँ , सर्प गले में डाल आओ न ||
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8- चुलियाला छंद चतुष्पदी= दोहा छंद के सम चरणों में + 1121
गलियाँ जहाँ उदास हों , लगे वहाँ पर शूल कहना न |
और बरसता हो जहर, वहाँ न खिलते फूल रुकना न ||
गम के पत्थर हों लगे , रोता हो विश्वास सहना न |
वहाँ हौंसले टूटते , रहते लोग उदास रहना न ||
उपरोक्त सभी उदाहरण – सुभाष सिंघई जतारा ( टीकमगढ़ ) म०प्र०
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उपरोक्त आठ पदांत हैं , जो भी आप लय में लाकर प्रयोग कर सकें , करें , किंतु ध्यान रहे कि जो भी पदांत आप प्रयोग करें वह पूरी एक चतुष्पदी में करें।
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चुलियाला ( चूड़ामणि ) छंद
दोहा छंद के पदांत में 1211 जोड़कर
गीतिका , समांत आर , पदांत यहाँ पर
उनकी जय होती सदा , जिनके नेक विचार यहाँ पर |
उन्हीं विचारों की झलक , करती है शृंगार यहाँ पर ||
बोल उठें जय लोग भी , कर उठते है वाह खुशी से ,
परहित के शुभ भाव से , मन के बजते तार यहाँ पर |
नेता की जय शोर है , प्रभु की करे विभोर सदा ही ,
जय बुलवाना बात कुछ , जय होना कुछ सार यहाँ पर |
मिलना जुलना हो जहाँ , जय- जय सीताराम कहे हम ,
हो जाए प्रभु नाम से , जग में बेड़ा पार यहाँ पर |
जय जैसे शुभ कर्म से , रहती खुशी अपार निजी मन ,
निज जय जो लगवा रहे , उस जय में है हार यहाँ पर |
सुभाष सिंघई
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चुलियाला छंद दोहा + यति प्रयोग 122
(मुक्तक)
संसार का एक पहलू
फूल खिलें सब देर से , पहले काँटे शोर मचाते |
खलनायक सम्मुख मिले , तब ही नायक जोर लगाते |
कहे ‘ सुभाषा’ आज भी, सुंदर रहते गेह हमारे –
मिलजुल कर हम सब रहें,सबको अपनी ओर बुलाते |
संसार का दूसरा पहलू
सभी पुराने दूर है , आज नए जो गान मिले है |
उनको बिखरा देखता , सबके सब अरमान हिले है |
गंध कपट की अब रहे , मिले दिखावट खार पुरानी –
नजर उठाकर देखता , बने हुए शैतान किले है |
आज गजब हालात है , रोते रहते ओज किनारे |
सूरज चंदा छिप गए , करते रहते खोज सितारे |
समय आज वेवश हुआ , सब कुछ बैठा हार उजाला –
बने काम सब टूटते , अब तो सब कुछ रोज हमारे |
सुभाष सिंघई
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चुलियाला छंद में गीत – दोहा छंद में + पदांत प्रयोग 212
हर अक्षर में भर रही, साजन सुनो सुगंध नीति की |(मुखड़ा)
पाती लिखकर भेजती , नेह भरी मकरंद प्रीति की ||(टेक)
पाती पाकर पवन भी , चला सजन के पास दौड़ता | (अंतरा
विरहा की सांसे लिए , साजन के तट खास छौड़ता ||
थोड़े में ही जानिए , साजन पूरा दर्द हटाना |
शब्द न मुझको मिल रहे, आकर तुम ही गर्द गिराना ||
तुम बिन जग सूना लगे, भर दो तुम आनंद जीत की |(पूरक)
पाती लिखकर भेजती , नेह भरी मकरंद प्रीति की ||(टेक)
काजल बहकर गाल पर ,रोता है शृंगार शाम को (अंतरा)
सखियां आकर कह रहीं, कहाँ गया भरतार काम को ||
तू क्यों सँवरें रात- दिन , साजन क्यों परदेश धाम को |
प्रीतम क्या अब आ रहें, धरें भ्रमर परिवेश नाम को
करें इशारा नैन से , सजनी गाती छंद मीत की (पूरक)
पाती लिखकर भेजती , नेह भरी मकरंद प्रीति की ||(टेक)
सब कहते मैं मोरनी , नयन आज चितचोर टेरते |(अंतरा)
चढ़े धनुष पर तीर सी , काजल की सब कोर हेरते ||
बनी बावरी घूमती , समझ न आती बात बोलते |
कब होती अब भोर है , कब होता दिन-रात तोलते ||
प्रीतम मेरे लो समझ , विरहा गीता छंद गीत की |{पूरक)
पाती लिखकर भेजती , नेह भरी मकरंद प्रीति की ||(टेक)
सुभाष सिंघई जतारा (टीकमगढ़) म० प्र०
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चुलियाला छंद (गीतिका) (13 – 16)
दोहा छंद + 1112 , समांत आर , पदांत- जगत में
बड़ी बात लघु रूप से , कविता कहती सार जगत में |
कविता के शुचि भाव ही , देते सबको प्यार जगत में |
कविता लिखना अति सरल , भावों का है खेल यतन से ,
शब्द चयन जब श्रेष्ठ हों , अनुपम है उपहार जगत में |
कवि जब कविता को लिखे, लिखकर होता धन्य कथन से ,
माँ शारद का पुत्र बन , पाता पुण्य अपार जगत में |
कविता उनसे दूर है , लेन – देन जब चाह मनन में ,
भाव शून्य जब तुक रहें , अंधकार की खार जगत में |
शीत माह की धूप में , खिले सुबह से फूल चमन में ,
ऐसी ही कविता लगे , शुचिमय गंगा धार जगत में |
कविता को सब जानिए , है शारद का रूप सहज ही ,
जिसके चरणों में झुके , भक्तों का सत्कार जगत में |
कविता की आभा सदा , देती है संदेश चमक- सी
करती दर्पण काम यह , चलती हर दरबार जगत में |
कविता कवि मन भाव है , निर्झर होते गीत भगत के ,
जहाँ हृदय कविता रहें, दूनी करती चार जगत में |
कविता छोटी सी रहे , या लेवें आकार , धरनि में ,
आँचल इसका है बड़ा , करती है विस्तार जगत में |
कविता निकसत है हृदय , जोड़े कवि से तार नवल ही ,
कवि कविता पूरक रहें , करते रहें दुलार जगत में |
सुभाष सिंघई जतारा
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चुलियाला छंद दोहा + यति प्रयोग 1112
उनसे मिलती खोट है , जिनका जानूँ साथ सुनहरा |
पढ़वाते है चैन से , सबको उल्टे हाथ ककहरा ||
सरे आम सब देखते , बनते सबके नाथ छहररा |
रावण अब मरता नहीं ,उल्टा फूटे माथ दशहरा ||
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चुलियाला छंद गीतिका , स्वर – कैर , पदांत – इआया
दोहा छंद + यति 122 का प्रयोग
राजनीति मैदान में , जब भी अपना पैर टिकाया |
खाकर आए चोट हम , आकर सबने बैर निभाया |
काँटो बाली है फसल , छीन लिया सुख चैन हमारा ,
तलवारें थी सामने , जब भी अपना मैर मिलाया |
मैर =गौत्र
जड़ें काटते मित्र ही , अब अनुभव का गान सुनाता ,
जहाँ जरूरत थी हमें , हमको पूरा गैर दिखाया |
राजनीति सागर मिला , मिलते काफी जाल सुनो जी ,
नहीं नाव पर चढ़ सके , पर दे आए तैर किराया |
वादों की कीमत नहीं , राजनीति के देख अखाड़े ,
कहता यहाँ सुभाष है, हाथों काला खैर रचाया |
सुभाष सिंघई जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०
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चुलियाला छंद – दोहा छंद में + यति प्रयोग 1112
आज हुए भदरंग हैं , त्योहारों के रंग, गजब है |
प्रेम भरी बातें दिखें , अब कटुता के संग ,अजब है ||
फीके – फीके स्वाद में ,जीते है मिष्ठान , महज ही |
मरती जीती चासनी , मावा खोता शान, सहज ही ||
मेंढ़क सिर पर कूँदते , चूहे कुतरें कान , जगत के |
दूल्हे बने सियार है , गर्दभ देते ज्ञान , गरज के ||
लाज शर्म वैश्या रखे , सती चले बेढंग, टहल के |
कपट बजे अब ढोल से ,सिकुड़ी रहे उमंग,मसल के ||
अब असत्य का शोर है , रखें सत्य मुख बंद, सरल से |
वाह- वाह अब पा रहे , खींचा तानी छंद , गरल से ||
आगे नीम हकीम है , मिलते तिकड़मबाज, धवल है |
जब सुभाष सच बोलता , सिर पर गिरती गाज , प्रवल है ||
योगी से तप दूर है , उत्कंठा है शांत, करम से |
झरने सूखे मिल रहे , दिखे चंद्र अब क्लांत, भरम से ||
समाधान हल भूलकर , खोज रहा है ज्ञान, भगत में |
प्रवचन करते काग है , हंस बना यजमान , जगत में ||
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चुलियाला / चूड़ामणि छंद ( दोहा के समचरण में + 122 जौड़कर
होली पर रसिया ( मुक्तक)
रंग बिरंगा माह है , गोरी मन मदहोश लगा है |
लौटे प्रिय परदेश से , रोम – रोम में जोश जगा है |
गोरी भावुक लग रही , सुलझाती है बाल बला से ~
टेसू जैसे सूर्य का , गालो पर अब कोष उगा है |
नैना चंचल हो गए , अब काजल की कोर खिली है |
मस्ती आई झूमकर , अब गोरी की ओर मिली है |
पग धरती पर नाचते , नूपुर देते ताल रुहानी –
गोरी लगती आजकल,जैसे खिलती भोर लिली है |
धरती पीली लाल है , अनुपम सुंदर फूल खिले है |
गोरी तन्मय गा रही , बिसरे भी सब शूल गिले है ||
छनछन पायल बज रही, थिरक रहे सब अंग नाच से –
सभी शिकायत मंजिलें,सब गिरकर अब धूल मिले है |
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आधार चुलियाला छंद , गीतिका
समांत आस , पदांत सजनियाँ
फागुन के शुभ माह में , प्रीतम माने खास सजनियाँ |
तीन लोक की सम्पदा ,कहती मेरे पास सजनियाँ |
होली की मस्ती चढ़ी , मन में सुंदर फूल महकते ,
नेह पिया का हो सदा , रखती है यह आस सजनियाँ |
कोयलिया भी गा रही , बैठ आम की शाख पकड़ के ,
भावों के सुर ताल से , रचा रही है रास सजनियाँ |
प्रीतम दर्शन चाहती , गोरी लगे अधीर जगत में ,
मिलन नेह का जब मिले ,भरकर चले सुबास सजनिया |
मड़राता है अब भ्रमर ,रहा पुष्प को चूम चमन में ,
बैठी- बैठी देखती , लगती आज उदास सजनियाँ |
रसिया मन भँवरा लगे , अद्भुत उसका प्रेम प्रकट है ,
लखकर उसका प्यार , भरती रहे उजास सजनिया |
©®सुभाष सिंघई , जतारा ( टीकमगढ़ ) म० प्र०
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