चुप रहो
चुप रहो
मां हमेशा झड़कती थी…चुप रहो बच्ची ज्यादा नहीं बोलते।
थोड़ी सी बड़ी हुई तो…
थोड़ी सी बड़ी हुई तो मां फटकार लगाती चुप रहो बड़ी हो रही हो ।
जवान होने पर….
जवान होने पर मां जोर से दपटती चुप रहो दूसरों के घर जाना है।
ससुराल गई जब…
ससुराल गई जब पति के किसी बात पर बोलने पर उनके डांट मिली चुप रहो तुम जानती ही क्या हो।
नौकरी पर गई जब…
नौकरी पर गई जब सही बात बोलने पर कहां गया चुप रहो नहीं सुनने की आदत नहीं है क्या अगर काम करना है तो चुप रहो।
थोड़ी उम्र ढली जब…
थोड़ी उम्र खली जब अब जब भी बोली तो बच्चों ने कहा तुम्हें इन बातों से क्या लेना देना चुप रहो।
बूढ़ी हुई तो…
बूढ़ी हुई तो कुछ भी बोलना चाहा तो सब ने कहा चुप रहो तुम्हें आराम की जरूरत है।
इस चुप्पी की कहो में आत्मा की कहो में बहुत कुछ दबा पड़ा है उन्हें खोलना चाहती हूं… बहुत कुछ बोलना चाहती हूं… पर सामने यमराज खड़ा है उसने कहा चुप रहो तुम्हारा अंत आ गया है और मैं चुपचाप चुप हो गई… चुप चाप चुप हो गई।
स्वरचित कविता
सुरेखा राठी