चुप कर पगली तुम्हें तो प्यार हुआ है
प्यार वाले अक्सर टाल दिया करते है
मुस्कुरा कर उनका नाम लिया करते हैं
सिरफिरे जब आंखें दिखाने लगे
फूल की खुशबू तुम तक आने लगे
समझो उस दिन कुछ काम हुआ है
चुप कर पगली तुम्हें तो प्यार हुआ है।।१।।
बाग में कलियां खिला करते हैं
गेसुओं वो पनाह लिया करते हैं
क़ातिल अदाएं जब माने लगे
छुप कर कोई जब मनाने लगे
कह दो आज वो मेरे नाम हुआ है
चुप कर पगली तुम्हें तो प्यार हुआ है।।२।।
वो अक्सर मिला करते हैं
आंखें दो चार किया करते है
खुद को ही खुद से जब पाने लोगों
कदम दर कदम कदमों में आने लगो
सच है “प्रभात” तेरा जो शाम हुआ है
चुप कर पगली तुम्हें तो प्यार हुआ है।।३।।
आंचल सर पे नहीं रहते है
चांद अक्सर दिन में दिखते है
आशियां अपनी भी बुनने लगे
शाहिल को कश्ती जब भूलने लगे
कम है जो आज हुआ है
चुप कर पगली तुम्हें तो प्यार हुआ है।।४।।
सब कुछ लूट कर बदनाम करते हैं
वो भी थे शामिल केवल मेरा नाम लेते हैं
अंधेरे का डर जब सताने लगे
तुम्हें देख कर हर आंख मुस्कुराने लगे
समझ लेना इन्तकाम हुआ है
चुप कर पगली तुम्हें तो प्यार हुआ है।।५।।
गमों का बोझ दिया करते है
ज़ख्मों में हम सांस लिया करते हैं
पीड़ा जब हद से बढ़ने लगे
अदाएं तुम्हें जब डंसने लगे
छुपकर झेलना जो तेरे साथ हुआ है
चुप कर पगली तुम्हें तो प्यार हुआ है।।६।।
घर नहीं मिला करते हैं
वो मरघट पे बसेरा करते हैं
घर की याद जब सताने लगे
मौत की आहट जब आने लगे
पहली बार नहीं तेरे साथ हुआ है
चुप कर पगली तुम्हें तो प्यार हुआ है।।७।।
स्वरचित कविता:-सुशील कुमार सिंह “प्रभात”