चुप्पी
कई बार हम कुछ बोलना चाहते हैंं,
फिर कुछ सोचकर चुप हो जाते हैं,
कुछ हालात की संज़ीदगी का तकाज़ा होता है,
जिससे लफ़्जों का आग़ाज़ ज़ब्त हो जाता है,
कुछ मरासिम की सलामती का वास्ता होता है,
कुछ जज़्बातों की रौ में बह जाने का ख़ौफ़ होता है,
चुप रहना भी कभी-कभी ज़रूरी होता है,
वरना बात का बतंगड़ बन जाने का अंदेशा होता है,