कविता : चुनौती
स्वीकार चुनौती हर लेगा।
इतिहास नया वही रचेगा।।
मोड़ नये पल-पल आएंगे।
सीख नयी पर सिखलाएंगे।।
सोच अकेले होगा चलना।
पीर मिले फिर भी है खिलना।।
सूर्य अकेला ही चलता है।
मंज़िल पाकर ढ़लता है।।
संग चलेगा कोई अपने।
देख न ऐसे राही सपने।।
मीत डगर को समझो प्यारे।
साथ रहेंगे प्रकृति नज़ारे।।
लक्ष्य किसी को मत बतलाओ।
अटल अडिग हो चलते जाओ।।
जब मन-मंज़िल मिल जाएगी।
बात स्वयं सबतक आएगी।।
सीधी चले कभी बलखाए।
नदी तन्हा सागर तक जाए।।
ठान चलो लिए आन प्रीतम।
फल पाओगे अद्भुत अनुपम।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना