चुनिंदा अश’आर
आपके मरतबे पे हम दिल से,
आपको हम तवील लिक्खेंगे।
दूर होकर भी मुहब्बत का असर रक्खा है ।
हमने खामोश दुआओं का सफर रक्खा है ।।
“याद करने पे याद करता है ।
तेरी फुर्सत की क्या ज़रूरत है ।।”
“किसी भी दीद की
हसरत हमें नहीं रहती।
हमारी आंखों में चेहरा
तुम्हारा रहता है ।।”
“दर्द महसूस हमको क्या होगा ।
हमतो सीने में दिल नहीं रखते ॥”
अब सुंकू कैसे मेरा दिल पाये ।
तेरी आदत सी हो गई दिल को ॥”
यूं ही होती नहीं है खामोशी ।
बोझ लफ़्ज़ों के दिल पे होते हैं ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद