चुनाव
एक गीतिका….
शीर्षक – चुनाव
चुनावों के बहाने से हमें नेता लुभाते हैं।
दिखा मीठे सपन सबको गरीबो को पटाते हैं।1
न आये याद वो जनता विगत के पांच बरसों में।
बने बरसात के मेंढक चुनावों में टर्राते हैं।2
किये वादे अनेकों थे फकत वोटों की’ खातिर जो।
वही वादे इरादे बाद में सब भूल जाते हैं।।3
है आया आज वो मौक़ा सबक उनको सिखाने का।
वही नेता वो’ अभिनेता बदल जो बाद जाते हैं।।4
उठो जागो अभी लो पहचान ताकत वोट की अपने।
करें वादा खिलाफ़ी जो सबक उनको सिखाते हैं।5
प्रवीण त्रिपाठी
19 फरवरी 2017