*चुनाव में महिला सीट का चक्कर (हास्य व्यंग्य)*
चुनाव में महिला सीट का चक्कर (हास्य व्यंग्य)
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जब से महिला-आरक्षण चला है, राजनीति में महिलाओं का महत्व दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। बिना महिलाओं के राजनीति अब संभव नहीं है। सबसे ज्यादा भरोसा पुरुष किस महिला पर कर सकते हैं ? लौट-पलटकर पत्नी रूपी महिला पर ही आशा भरी निगाहें टिक जाती हैं। हस्ताक्षर पत्नियॉं करेंगी और निर्णय पतिदेव लेंगे।
यद्यपि परिवार में माता जी और बहन जी भी होती हैं। भाभी जी भी होती हैं। लेकिन उनके बारे में निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि वह जैसा कहो वैसा करती रहेंगी। चुनाव जीतने तक तो मतदाताओं की भी उम्मीदवार लोग हां में हां मिलाते हैं। लेकिन चुनाव जीतने के बाद किस तरह नजरें बदल जाती हैं, इसे सब जानते हैं। ऐसे में किसी महिला को यह सोच कर जिता देना कि वह तुम्हारे कहने से काम करती रहेगी, एक जोखिम भरा निर्णय होता है। पत्नी को पुरुष की अर्धांगिनी इसीलिए कहा गया है कि पति और पत्नी दोनों मिलकर संपूर्ण बनते हैं और वे आपस में भरोसा कर सकते हैं।
सबसे ज्यादा मुश्किल उन लोगों की है जो कुॅंवारे होते हैं । इस समय राजनीति में कुॅंवारा होना एक अभिशाप से कम नहीं है । अगर आपके क्षेत्र में सीट महिलाओं के लिए आरक्षित है, तो आप बिना चुनाव लड़े ही चुनाव की दौड़ से निकाल दिए जाते हैं । यह स्थिति महिलाओं के लिए तो अच्छी है। उनको चुनाव में केवल महिलाओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन पुरुषों के लिए यह ऐसा ही है जैसे किसी ने सुत्तलों पर से ही पतंग काट दी हो। अब आप आसमान में अपनी पतंग क्या उड़ाइएगा ? आपसे सिर्फ इतना पूछा जाएगा कि आप पुरुष हैं अथवा महिला ? और यदि अपने आप को पुरुष बताते हैं, आपको चुनाव मैदान से बाहर चले जाने के लिए कह दिया जाएगा ।
भारत की राजनीति में अविवाहित लोगों ने लंबे समय तक जो चुनाव जीते हैं, वह जमाना अब नहीं रहा। अब तो इस बात के लिए तैयार होना पड़ता है कि या तो आप खुद चुनाव लड़ेंगे या अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाएंगे।
मजे की बात यह है कि मतदाता यह नहीं पूछता कि आरक्षण पत्नियों के लिए है या महिलाओं के लिए है ? इसलिए महिला-आरक्षण भी पत्नी-आरक्षण होकर रह गया है। जो महिला चुनाव में खड़ी होती है, प्रायः यह मान लिया जाता है कि उसे उसके पति ने खड़ा किया होगा । सोचने वाली बात है कि क्या महिला आरक्षण का यही उद्देश्य होता है ? स्वतंत्र रूप से विचारशील और सक्रिय महिलाएं अपने बलबूते पर चुनाव में क्यों खड़ी नहीं हो पातीं ? पुरुषों को भी आवाज उठानी चाहिए कि अपनी पत्नी की बजाय हमें खुद भी चुनाव में खड़े होने का अधिकार मिलना चाहिए।
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लेखक :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451