चुनाव का रंग।
चुनाव का रंग सत्ता के गलियारों में धीरे-धीरे चढ़ने लगा है।
नेताओं का झूठा अपनापन यहां देखो सबको दिखने लगा है।।1।।
एक बार फिर से नेता खोखले वादे आवाम से करने आएंगे।
किसी शूद्र के घर में दिखावे की इंसानियत में खाना खाएंगे।।2।।
तारीख मुकर्रर होने पर बैनर,पोस्टर,झंडों और होल्डिंगों से।
बस्ती की गलीयारें, मोहल्ले घर सभी के सभीे पाटे जाएंगे।।3।।
वक्त-ए-चुनाव अपने लिए यह नेता गिड़गिड़ा के वोट मांगेंगे।
जीत हो या हो हार चुनाव के बाद यह फिर दरवाजे ना आएंगे।।4।।
कर्मठता,निष्ठा इन नेताओं की तो प्रचार के वक्त ही दिखती है।
फुर्सत इनको पल भर की भी खुद को चुनाव में ना मिलती है।।5।।
लगाकर झूठ के मुखोटे अपने चेहरों पर हर किसी से मिलेंगे।
क्या हो दादी,अम्मा या बाबा जी सभी के पैरों में गिर पड़ेंगे।।6।।
आवाम इनसे ऊबी है फिर भी दरिया दिली अपनी दिखाती है।
थक हार कर कैसे भी हो जनता अपना वोट डालकर आती है।।7।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ