चीर-हरण
छा गया अँधेरा धुँआ उठ रहा है,
हाल ये ही मेरे भारत हो रहा है |
नैतिकता पे भारी अनैतिकता हो रही है,
संतरी से मन्त्री सभी मूक दर्शक है |
कहाँ खो गये हो प्यारे मुरारी,
माँ-भारती का चीर-हरण हो रहा है ||
महंगाई का दानव खड़ा द्वार पे,
विकास के नाम पे सब हरण हो रहा है |
पानी सर से गुजरने लगा अब तो,
क्या-क्या कहूँ कुछ न वरण हो रहा है |
द्रोपदी को बचाया था चीर बन,
अब तो तुम्ही हो नैया, तुम्ही हो खेवैया |
आओ मुरारी बचाओ लाज भारी,
माँ भारती का बेटों से चीर-हरण हो रहा है ||
छा गया चहुओर अँधेरा, धुँआ उठ रहा है,
हाल यही तो, मेरे भारत हो रहा है |
कहाँ खो गये हो प्यारे मुरारी,
माँ-भारती का चीर-हरण हो रहा है ||
पं. कृष्ण कुमार शर्मा “सुमित”