“चीखें विषकन्याओं की”
“चीखें विषकन्याओं की”
कभी पापी पेट की खातिर
तो कभी दबावों में,
जहर को धीरे-धीरे उतारा गया
हमारी नसों,धमनियों औ’ शिराओं में।
हुजूर, झूठ के ताले में
बन्द है हमारा इतिहास,
हमने युद्ध के लिए
कभी स्वीकृति तक नहीं दी
हम पर क्या गुजरता है
सोचिए, समझिए, करिए अहसास।