चिड़िया का घोंसला
“ चिड़िया ” घोंसला छोड़कर आसमान से पार उड़ गई ,हम बस देखते रह गए ,
सूनी हो गई पेड़ की पत्ती-डालें , हम आसमान की ऊंचाईयों को देखते रह गए I
तिनका-2 जोड़कर , लोगों के दिलों को तोड़कर चिड़िया ने “घोंसला” बनाया ,
जब पेड़ में फल-फूल आये तो उसने आसमान से पार अपना ठिकाना बनाया ,
बेदर्दी “ चिड़िया ” तुझे पेड़ ,पत्तियों,डालियों पर क्यों तनिक तरस नहीं आया ?
आंसुओं में भीगी पलकें निहार रही चिड़िया को ,पर तूने सबसे मुंह क्यों फिराया ?
“ चिड़िया ” घोंसला छोड़कर आसमान से पार उड़ गई ,हम बस देखते रह गए ,
सूना हुआ पेड़ का सारा “जहाँ ” हम बस जिंदगी की तेज रफ़्तार देखते रह गए,
चिड़िया ने सुनहरे टूटे पंखों से एक पैगाम हम सब तक पहुँचाया ,
आना- जाना कुदरत का अमिट दस्तूर है , तू क्यों अपने पर इतराता ?
सुंदर गुलिस्ताँ छोडकर तुझे भी एक दिन दूर गगन के पार है जाना ,
इस छोटी जिंदगानी में गूंज जाये जग में, तेरा इंसानियत का तराना I
“ चिड़िया ” घोंसला छोड़कर आसमान से पार उड़ गई ,हम बस देखते रह गए ,
बिखर गई मोतियों की सुंदर माला हम बस टूटे मोती की ओर निहारते रह गए I
“राज” घोंसला छोड़ने से पहले गुलशन में अपनी खुसबू बिखेरते हुए चले ,
इंसानियत के दो फूल “जग के मालिक” के चरणों पर अर्पित करते चले ,
इंसान -2 से प्यार करके “परम पिता ” के सपनों को साकार करते हुए चले ,
उसके जग से प्यार करके अपना जीवन “ मानवता ” के नाम करते हुए चले I
“ चिड़िया ” घोंसला छोड़कर आसमान से पार उड़ गई ,हम बस केवल देखते रह गए ,
आना -जाना जीव का जीवनचक्र है , हम जीवन की गहराइयों को बस देखते रह गए I
देशराज “राज”