“चिड़ियाघर”
चैत का महिना उमस से रोज तपता दिन,
ग्रीष्म के अवकाश में तुम ज़ू कभी जाओ।
शेर, हाथी, तेंदुआ, चीतल, चिकारा मृग,
अश्व, सॉंभ्ार,रीछ को तुम पास में पाओ ।
जंगलों में हाथियों के शोर को सुनकर,
शेर, चीता, तेंदुआ सब भाग जाते हैं।
गॅूंजता है घोर गरजन थर-थराता वन ,
भय से व्याकुल जानवर सब खौफ खाते हैं।
पक्षियों के झुण्ड पेडों पर विचरते हैं ,
बोलियॉं उनकी हमें कितना लुभाती हैं।,
तुम कभी उन पंक्षियों की बोलियॉं बोलो
जो तुम्हें उन घोंसलों से रोज आती हैं ।
रचनाकाल
तिथि —- २५ अप्रैल २०१८
जगदीश शर्मा सहज
अशोकनगर म0प्र0