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7 Aug 2021 · 1 min read

चिराग़ बुझा दें….

बादल, बिजली, बारिश, बूँदे
हर मंजर चाहे ले लें कोई…
बस वह जुगनू रहने दें मुझ तक
बाकी हर एक चिराग बुझा दें…

शोहरत, तमन्ना, आरज़ू,मोहब्बत
हर कशिश अब उनकी हैं…
टूटा हुआ ख्वाब रहने दें पलकों में
बाकी हर एक ख्याल मिटा दें…

मेरे मांझी की हसरत है
खुशियों की इनायत पाने की…
वो एक खुशी के मिलने तक
मुझे उनके कदमों में बिछा दें…

मंजिल की तलाश में वो
भटकता हुआ मुसाफिर है…
या तो उसको मिल जाए मंजिल
या फिर मेरा आशियाना जला दें…
– ✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
©®

5 Likes · 4 Comments · 473 Views
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