‘चिराग’
रोशन हरेक राह हुई
सब हर लिया अंधेरा,
मन खुशियों में हुआ मग्न
आया नया सवेरा।
स्नेह में पगा सूत्र लेके
संग रह दिन रात जगे,
औरों को दिखाता राह
घर अपने तम का घेरा।
सीना अपना दाग दाग
रख हृदय में अपने आग,
करे लोक हित का काज
कहते उसको हैं चिराग।
सहता थपेड़े पवन मार,
नित आरती सुर उतार,
संतोष उसमें है अपार
जुड़ा आग से ही उसका भाग।
प्रचंड ज्वाल विकराल
फिर भी शांति की मिशाल
शक्ति का है महा कोष ,
शमित रखे अपना रोष,
पावन विचार तब उजार ,
कुमति का बने वो काल।
पवन उड़ाले वेग से जो
फिर न कहना उसका दोष।
चिर जरे अमन चिराग ,
मन बसा हो अनुराग।
प्रसन्नचित जिये संसार,
कोई न बने दुख का भाग।
बनेगा नया इतिहास ,
खिले जूही अमलतास।
हर मुख खिलेगा आफ़ताब,
सोया जो वो जाग-जाग।
-Gn