चिराग़ ए अलादीन
चिट्ठी,तार, खूंटे बंधा टेलीफोन
या पेजर , कॉर्डलेस अब पूछे कौन
कही पीछे छूटे बटन मोबाइल
स्मार्ट फोन ने है धाक जमाई
संपर्क हुए अब बडे आसान
मुट्ठी मे बंद दुनिया जहांन
मांग बनी हर शख्स जहान
हर जीवन की सांस समान
बडा जरूरी हर हाथ यह रहना
धडी कलाई अब नही है पहना
घर बैठे निबटे कई काम
दूरी इससे अब नही आसान
मा बाप का व्याकुल मन
दिख जाए बच्चो पोतो के नयन
दूरस्थ दर्शन का क्या है कहना
सम्मुख अपने दिखने सा होना
पैगाम के लंबे इंतजार को मिला विराम
दूरी अब ना करे परेशान
सबके लिए जरूरी बैंक
चौबीस घंटे हुआ लेन-देन
लंबी लाईन से मिला छुटकारा
मोबाइल ने दिया सहारा
चुटकियो मे अब संवरे काम
हथेलियो मे है बैंक तमाम
मंनोरोजन, ज्ञान या हो समाचार
सब पाना चाहे इसमे प्रचार
अपना मत सब चाहे रखना
राजनेता हो या आम इंसान
सबके अवसर हुए समान
एक से बढ़कर एक सम्मान
संदीप पांडे “शिष्य”