” चिन्तन “
यदि हे ‘मां’ हमारी बोलती और ‘मां’ हमारे बोल है|
तो पिता सब दुख-दर्द’ का खिल-खिलाता बोल है|
ज़िन्दगी तो कट रही है किन्तु है अफसोस हमको,
बिन पिता के पुत्र के जीवन का ना कोई मोल है|
हैं सभी अपने हमारे किन्तु ‘मन’ फिर भी अकेला,
अशांत मन को शांत करने बाला ना कोई बोल है|
भूला सभीको प्यार में पर याद सबको कर लिया,
भूलकर भी ‘पिता’ का किसी से ना कोई तोल है|
अाज मैं जब देखता हूँ सारे ‘रिस्ते-नाते’ तौलकर,
तब हुआ मालूम धीरज पित्र का ना कोई मोल है|
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✍ धीरेन्द्र वर्मा
जिला-खीरी (उ०प्र०)